
Ajnabi Se Ajnabi Tak
"अजनबी से अजनबी तक" एक ऐसी कहानी है जो कहने से ज़्यादा महसूस की जाती है।
यह दो अजनबियों की कहानी है - जो एक बेंच पर शुरू होती है, एक लाइटर से जुड़ती है, और फिर चुपचाप एक ऐसे रिश्ते की ओर बढ़ती है जो कभी पूरा कहा नहीं गया, और शायद कभी पूरा था भी नहीं। कभी हँसी, कभी ख़ामोशी, कभी कुछ न बोले गए सवाल... और बहुत सी अधूरी बातचीतें इस कहानी में धीरे-धीरे आकार लेती हैं।
यह सिर्फ़ एक प्रेम कहानी नहीं है।
ना इसमें कोई साफ़ अंत है, ना कोई तय शुरुआत। यह उन रिश्तों की बात करती है जो "रिश्ता" कहलाने की हदों में नहीं बंधते। यह उन पलों की कहानी है जो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हीं चुपचाप पनपते हैं - और उतनी ही चुपचाप खो भी जाते हैं।
अगर आप उन कहानियों से जुड़ते हैं जो कम बोलती हैं पर बहुत कुछ कह जाती हैं,
तो "अजनबी से अजनबी तक" आपका इंतज़ार कर रही है।
यह दो अजनबियों की कहानी है - जो एक बेंच पर शुरू होती है, एक लाइटर से जुड़ती है, और फिर चुपचाप एक ऐसे रिश्ते की ओर बढ़ती है जो कभी पूरा कहा नहीं गया, और शायद कभी पूरा था भी नहीं। कभी हँसी, कभी ख़ामोशी, कभी कुछ न बोले गए सवाल... और बहुत सी अधूरी बातचीतें इस कहानी में धीरे-धीरे आकार लेती हैं।
यह सिर्फ़ एक प्रेम कहानी नहीं है।
ना इसमें कोई साफ़ अंत है, ना कोई तय शुरुआत। यह उन रिश्तों की बात करती है जो "रिश्ता" कहलाने की हदों में नहीं बंधते। यह उन पलों की कहानी है जो हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हीं चुपचाप पनपते हैं - और उतनी ही चुपचाप खो भी जाते हैं।
अगर आप उन कहानियों से जुड़ते हैं जो कम बोलती हैं पर बहुत कुछ कह जाती हैं,
तो "अजनबी से अजनबी तक" आपका इंतज़ार कर रही है।